Kavita Jha

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हमारी गाय और कोरोना संस्मरण#लेखनी दैनिक कहानी प्रतियोगिता -03-Jan-2023

संस्मरण
हमारी गाय और कोरोना
बात २०२० की है जब कोरोना ने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया था। यह 2020 साल बहुत बुरे अनुभव से बीत रहा था।हम में से किसी ने क्या कभी सोचा था कि कभी ऐसा समय आऐगा जब इंसान इंसान से डरेगा।कोरोना महामारी का असर क्या सिर्फ इन्सानों पर ही पड़ रहा है... क्या जानवर जो अपने शारीरिक कष्टों को बोल नहीं पाते हैं... उन पर नहीं पड़ा है इस महामारी का असर। 
     गौरी ने आज भी कुछ नहीं खाया, पूरा दिन खड़ी ही रही। आँखों से लगातार उसके आँसू बह रहे थे। पेट फूला हुआ लग रहा था। शायद उसे साँस लेने में दिक्कत हो रही थी। पानी की बाल्टी भी उसके सामने वैसे ही पड़ी थी। 
     हम सब परेशान थे खासकर मेरा छोटा बेटा जिसका वो जीता जागता खिलौना ही तो थी। जब करीब साल भर का ही था तभी उसके पापा उसको एक दिन अपने साथ घुमाने के लिए अपने दोस्त के खिलौनों की दुकान ले गए। वहाँ खिलौने वाली गाय देखकर मचल उठा और उसके पापा ने खरीद लिया।
     चाबी से चलने वाली वो गाय के साथ खूब खेलता और उसकी तरह ही मौ.. मौ... आवाज करते हुए गाय जैसे चलता। और धनिया पत्ता खूब खाता।एक बार अपनी दादी और चाचा चाची के साथ इलाहाबाद कुंभ मेले में गया था करीब ढाई साल का ही था तब। एक गाय और उसके बछड़े को देख जिद्द करने लगा इसको भी अपने साथ ले चलो घर। बहुत समझाया और प्रोमिस किया जब उसके चाचा ने कि ट्रेन में ये कैसे जाऐगी हमारे साथ घर पहुँचते ही हम तुम्हारे लिए इससे भी सुंदर गाय खरीद देंगे। तब जाकर माना वो और चाचा ने भी अपने दोस्त से बात की ...कुछ महीने पहले ही उनकी गाय ने बछिया को जन्म दिया था। बस हमारे घर भी वो सफेद और काले रंग वाली बछिया हुबहू उस खिलौने जैसी... जानवर कहाँ थी वो... वो तो हमारे परिवार की सदस्य और मेरे बेटे का खिलौना थी। 
    जब हम सर्दियो में गेट पर धूप में उसे बाँधते मेरा बेटा भी वहीं टिका रहता और कहता मेरे लिए भी एक रस्सी ला दो या इसकी रस्सी खोल दो। उसका नाम मोहिनी रखा था मेरी सासु माँ ने और वाकई सब का मन मोह लिया था उसने। 
गौरी उसी की बेटी थी। पहली संतान थी मोहिनी की और हम सब की लाडली। 
       मोहिनी को तो बंधे रहना पसंद ही नहीं था जैसे ही मेरा बेटा अपनी खिलौना कार ले उसके आसपास घूमता वो रस्सी खोल देती। रोटी उसी के हाथ से खाती। उसके आने के कुछ महीनों बाद घर से सब जगन्नाथ पूरी गए.. मेरा छोटा बेटा भी ... बड़े बेटे की परीक्षा चल रही थी तो मैं और मेरे पति घर पर ही थे। वैसे भी अब हमारा पूरा परिवार एक साथ कहाँ कहीं जाते थे जब से मोहिनी हमारे घर का सदस्य बनी थी। 
    सुबह जब मेरे पति ने उसका चारा लगाया और हाथ धो ही रहे थे और वो तब तक अपनी रस्सी खोल ड्राइंग रूम में खड़ी थी बिना किसी आवाज के इधर उधर देख रही थी जैसे किसी को ढूंढ रही हो। 
     रोज आँख खुलते ही मेरा बेटा अमरुद के पत्ते या उसे जो भी खाने वाली चीज़ मिलती वो लेकर उसके पास खड़ा रहता। और वो भी जब तक उसके हाथ से कुछ नहीं खाती तब तक अपने नाँद अपने चारे की तरफ देखती भी नही थी। 
        मुझे वैसे शूरू से ही गाय बैल से बहुत डर लगता था। जबकि मम्मी पापा बताते थे कि जब मैं छोटी थी तो मैं भैंस के बछड़े को देख मचल जाती थी हमने भी उस समय कुछ साल पाली थी भैंस तब मैं पाँच छह साल की ही थी.. पर डेढ़ दो साल के बाद ही बेच दिया था ...संभालना मुश्किल हो गया जब भैंस बड़ी हो गई और उसने एक बछड़े को जन्म दिया। उस समय हम कुछ दिनों के लिए हम अपने मामा के घर गए थे तभी...  मैं बहुत रोई थी। 
      कई दुर्घटनाओं के बाद से गाय बैल का डर मेरे मन में समा गया है। जब भी बेटे को उसके आस पास देखती बहुत डर लगता। यह आठ साल जब तक हमारे घर में गाय थी मेरे मन का वो डर कभी खत्म ही नहीं हुआ। बेटा तो गाय के पास से हटने का नाम ही नहीं लेता.. खाना भी है तो उसी के पास... पढ़ना भी है तो वहीं बैठकर। 
    
    उस दिन मोहिनी को ड्राइंग रूम में खड़े देखा... मेरी हालत खराब हो गई थी मुँह से आवाज ही नही निकल रही थी। तभी फोन की घंटी बजी मैंने फोन स्पीकर पर किया ....छोटा बेटा पूछ रहा था मोहिनी ने खाना खाया और वो भी ध्यान से सुन रही थी... और ऐसा लगा उसकी मौ ..सुन जैसे वो अपनी भाषा में बात कर रही हो। तब तक आवाज सुन मेरे पति भी आ गए अंदर उसे समझाया अमू बस दो तीन दिन में आ जाएगा। ऐसा लगा वो समझ गई और अपने आप चली गई गैरेज में ...हाँ वहीं रहती थी वो।     
मैं डरती तो थी पर अपनी गायों की सेवा भी करती थी जब भी सब कहीं जाते अकसर मैं ही रुकती थी उनके पास। हमारे संयुक्त परिवार के वो तीन सदस्य हमेशा हमारी यादों में रहेंगे। 
   गौरी का बेटा रामजी..  वो रामनवमी वाले दिन हुआ था तो उसका नाम ही रामजी पड़ गया। वो करीब आठ महीनें रहा हमारे साथ फिर उसे हमारा ग्वाला अपने साथ ले गया। वैसे सिर्फ मुझे झोड़कर हर कोई गाय के सारे काम रस्सी खोलना बाँधना यहाँ तक की दूध निकालना भी ...सबने सीख लिया। 
     हमारे घर की खास बात यह है कि हमारे घर के किसी भी सदस्य को घर का कोई काम छोटा बड़ा नहीं लगता। उनके लिए भी हमने कभी अलग से कोई नौकर नहीं रखा...हाँ ग्वाला कभी आता कभी नहीं। 
  सेवा में तो हम लोगों ने कभी कोई कमी नहीं छोड़ी पर.. जब मोहिनी हमें छोड़कर इस दुनिया से गई अपनी गौरी को हमारे हवाले कर.. हम सब बहुत रोऐ आज भी जब याद आता है उसका पूरे घर में दौड़ना...सब्जी वाले के गाडी की आवाज सुनते ही उसका वो आवाज निकालना.. अपना खूटा तोड़ने की कोशिश... आँख में आँसू आ जाते हैं अब भी। मोहिनी से तो मैं भी मोहित हो गई थी। 
   मोहिनी के जाने के बाद हमारा घर मेरा बेटा और गौरी.. सब बहुत उदास हो गए। अब गैरैज में गौरी अकेलापन महसूस ना करे इसलिए हम लोगों ने अपना साऊंड बाक्स वहीं फिट कर दिया दिन वहाँ एफ एम पर गाने बजते रहते। 
   इस बार भी दिसम्बर में जब सब लोग जगन्नाथ धाम गए.. मैं और मेरे पति... गौरी कैसे रहेगी चार दिन अकेले ...इसलिए नहीं गए। और वो चार दिन कड़ाके की ठंड थी.. दिन भर आग जला हम दोनों वहीं गौरी के पास गैरेज में बैठे रहते। 
इस बार अप्रैल में जब कोरोना बीमारी ने अपने पैर पसार लिए थे.. हमारी गौरी... अपने अंतिम दिनों में बहुत कष्ट में थी। बहुत इलाज चला उसका कई पशु चिकित्सकों से दिखाया उसे। वो 15 दिन वाकई बहुत कष्टदायक रहे उसके लिए.. सबने बहुत सेवा की उसकी... वैसे गौरी से मेरा लगाव मोहिनी की अपेक्षा कम ही रहा। वो तो अपने खूटे से जहाँ उसे बाँध देते वहीं बंधी रहती..  उसकी मम्मी मोहिनी की तरह कभी दौड़ते हुए उसे नहीं देखा। 
     गौरी का रंग बिलकुल काला था सब कहते काले रंग की गाय बहुत शुभ होती है। 
    उस दिन सुबह से सारे बच्चे गैरैज में और बार बार डाॅक्टर कम्पाउंडर का आना जाना लगा हुआ था.  कई दिनों  से लगातार पानी चढ़ना, इंजेक्शन और दवाई खिलाना उसे ...बहुत मुश्किल काम होता जा रहा था। रात करीब नौ बजे तक तो सब उसके पास  बैठे थे .. मैं ऊपर किसी काम से अपने कमरे में आई ही थी कि मेरा छोटा बेटा पापा के  पास रोते हुए आया.... चुप ही नहीं हो रहा था उसके पापा और मैं जब उसे ले नीचे गैरैज में आऐ..  सब की आँखों में  आँसू.. गौरी चित थी जमीन पर और चारों तरफ पानी ही पानी.... नहीं बचा पाए हम उसे। मोहिनी की वो निशानी.. अब हमें छोड़कर जा चुकी थी। 
     अगले दिन जब उसे बड़े टैम्पो में ले जाया जा रहा था... गली के कुत्ते और बिल्लियाँ सब हमारे गेट के पास इस तरह खड़े थे जैसे उसे श्रद्धांंजली दे रहे हों। 
    करीब छह महीने से ज्यादा हो गए उसे गए पर मैं कई बार भूल जाती हूँ कि वो हमारे बीच नहीं रही। 

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कविता झा'काव्या'
रांची झारखंड
#लेखनी दैनिक कहानी प्रतियोगिता
#लेखनी कहानियों का सफर

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10 Comments

Sachin dev

05-Jan-2023 03:53 PM

Well done

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Sushi saxena

04-Jan-2023 10:24 PM

बेहतरीन

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Superr hai 💐

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